समर्पण
मिज़ोरम की 19 वर्षिय हॉकी खिलाड़ी लारेम सैमी की है। अपने बेहतरीन खेल के बलबूते लारेम का चयन हिंदुस्तान की महिला हॉकी टीम में किया गया था।
बीते रविवार जब सारा राष्ट्र क्रिकेट वर्ल्ड कप में खोया हुआ था तो हिंदुस्तान की बेटियों ने कुछ ऐसा कर दिखाया जो महिला हॉकी में किसी करिश्मे से कम नहीं है।
महिला हॉकी टीम ने विश्व हॉकी के प्रतिष्ठित एफआईएच टूर्नामेंट के फाईनल में जापान की टीम को जापान की धरती पर 3-1 से करारी शिकस्त देते हुये विजयश्री प्राप्त की।
फाईनल से पहले महिला हॉकी टीम का सेमीफाइनल मैच चिली की मज़बूत टीम के साथ था। तिरंगे की शान को बरकरार रखने का जुनून लिये राष्ट्र की बेटियां चिली टीम को कड़ी टक्कर देने का संकल्प ले चुकी थी। उस मैच को जीतते ही हिंदुस्तान की महिला टीम का ओलम्पिक के लिये क्वालीफाई करना भी निश्चित था।
मैच से एक दिन पहले लारेम के फोन पर उनके घर से एक कॉल आया। लारेम को लगा के शायद उनके परिजनों ने उन्हें कल के मैच के लिये शुभकामनाएं प्रेषित करने के लिये कॉल किया है।
लारेम ने फोन उठाया।
डबडबाती आवाज़ में दूजी ओर से कोई कुछ कहने का प्रयास कर रहा था। कुछ क्षण शांति रही और फिर उन्हें सूचित किया गया के उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे।
हार्ट अटैक से उनका निधन हो चुका है।
एक क्षण में लारेम की दुनिया हिल चुकी थी। वह उस शख्स को खो चुकी थी जिसने उन्हें उंगली पकड़ कर चलना सिखाया था। जिसने पहली बार उनके हाथों में हॉकी स्टिक थमाई थी। अपने बाबा की लाडली को इस बात पर विश्वास करने में काफी वक्त लगा के अब उनके पिता इस दुनिया में नहीं हैं। पिता के साथ बिताए हर स्वर्णिम पल की यादें आँखों से बह रही थी।
कोच और टीम मैनेजमेंट ने कहा के लारेम तत्त्क्षण अपना सामान बांध लें और अगली फ्लाइट से हिंदुस्तान लौट जायें ताकि वह अपने पिता की अंतिम यात्रा में शामिल हो सकें। टीम हताश हो गयी। अगले दिन एक महत्वपूर्ण मुकाबला था और उनकी चोटी की खिलाड़ी उनके बीच नहीं थी।
.......................... और फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी उम्मीद टीम मैनेजमेंट से लेकर अन्य खिलाड़ियों को भी नहीं थी। लारेम ने कहा के वह राष्ट्र का सम्मान दांव पर लगा कर पिता की अंतिम यात्रा में शामिल नहीं होंगी। वह वतन वापिस नहीं जाएंगी। वह अपनी टीम के साथ रहेंगी और अपने राष्ट्र की प्रतिष्ठा की जंग में अपनी टीम को अकेला नहीं छोड़ेंगी। उन्होंने कहा के उनके पिता उन्हें देख रहे हैं और वह यह मुकाबला जीत कर उन्हें गौरांवित करना चाहती हैं।
अगले दिन सारा दुःख और सारी पीड़ा भूल कर लारेम मैदान में उतरी। जम कर खेली और हिंदुस्तान विजयी हुआ। मैदान में जहां अन्य खिलाड़ी जश्न मनाते दिखे वहाँ अपने पिता को खो चुकी बिटिया के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान दिखाई दी। फाईनल मैच में भी लारेम के उत्कृष्ट प्रदर्शन से हिंदुस्तान ने जापान को उसकी ही धरती पर पछाड़ दिया।
*इसे कहते हैं समर्पण।*
Posted on- 06-30-2019 11:57:29 PM